________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी यतिधर्म विशेष देशना विधि एवंविधयतेः प्रायो, भावशुद्धेर्महात्मनः / विनिवृत्ताग्रहस्योच्चैः, मोक्षतुल्यो भवोऽपि हि॥३४॥ दुराग्रह रहित इस प्रकार भावशुद्धिवाले उचित अनुष्ठान वाले महात्मा भाव यति के लिये प्रायः यह संसार ही मोक्ष समान है. सद्दर्शनादिसंप्राप्तेः, संतोषामृतयोगतः / भावैश्वर्यप्रधानत्वात्, तदासन्नत्वतस्तथा // 35 // सम्यग्दर्शन आदि की प्राप्ति से, संतोषरूपी अमृत को प्राप्त कर लेने से, भावरूपी ऐश्वर्य की मुख्यता से और मोक्ष की समीपता से यहां ही मोक्ष कहा है. उक्तं मासादिपर्यायवृद्धया द्वादशाभिः परम् / तेजः प्राप्तोति चारित्री, सर्वदेवेभ्य उत्तमम् // 36 // मासादिक पर्याय की वृद्धि करके बारह महीने तक चारित्र को धारण करने वाला सर्व देवताओं से उत्तम तेज उत्कृष्ट सुख को प्राप्त करता है. न 658 For Private And Personal Use Only