________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी यतिधर्म विशेष देशना विधि स्वयं भ्रमणसिद्धेरिति // 66 // (436) आत्मा के अपने आप ही भ्रमण में सिद्धि है. भवयतिर्हि तथा कुशलाशयत्वादशक्तोऽसम असप्रवृत्तावितरस्यामिवेतर इति // 70 // (437) भावयति कुशल आशय वाला होने से अयोग्य प्रवृत्ति करने में असमर्थ है __ओर जो भावयति नहीं वह योग्य प्रवृत्ति करने में असमर्थ है. इति निदर्शनमात्रमिति // 71 // (438) यह समानता केवल द्दष्टांत मात्र कही है. न सर्वसाधर्म्ययोगेनेति // 72 // (436) उपरोक्त द्दष्टांत सब प्रकार से साद्दश्य योग का नहीं है. यतेस्तदप्रवृत्तिमितस्य गरीयस्त्वादिति // 73 // (440) भाव यति की अनुचित कार्य में प्रवृत्ति न होने का निमित्त मुख्य है. वस्तुतः स्वाभाविकत्वादिति // 4 // (441) वास्तव में सम्यग्दर्शन आदि आत्मा के स्वाभाविक गुण है. तथा सद्भाववृद्धेः फलोत्कर्षसाधनादिति // 75 // (442) और शुभ भाव की वृद्धि मोक्षरूप महाफल को देने वाली है. उपप्लवविगमेन तथावभासनादितीति // 76 // (443) राग-द्वेषादि उपद्रव का नाश होने से वैसा बोध होता है. 657 For Private And Personal Use Only