________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir =गुरुवाणी यतिधर्म विशेष देशना विधि यतिधर्माधिकारश्चायमिति प्रतिषेध इति // 62 // (426) शुद्ध यतिधर्म के अधिकार में इस प्रवृत्तिमात्र का निषेध है. न चैतत्परिणते चारित्रपरिणामेति // 63 // (430) चारित्र के परिणाम की उत्पत्ति होने से उत्सुकता नहीं होती. तस्य प्रसन्नगम्भीरत्वादिति // 64 // (431) चारित्र के परिणाम की प्रसन्नता व गम्भीरता से अनुचित अनुष्ठान नहीं होगा. हितावहत्वादिति // 65 // (432) चारित्र का परिणाम हितकारी है. चारित्रिणां तस्साधनानुष्ठानविषयस्तूपदेशः प्रतिपात्यसौ, कर्म-वैचित्र्यादिति // 66 // (433) उपदेश चारित्र परिणाम को साधनेवाला अनुष्ठान है, क्योंकि कर्म की विचित्रता से चारित्र परिणाम मिट सकते हैं अतः उपदेश आवश्यक है. तत्संरक्षणानुष्ठानविषयश्च चक्रादिप्रवृत्यवसान भ्रमाधानज्ञातादिति // 67 // (434) चारित्र की रक्षा के लिये अनुष्ठानवाला उपदेश इस प्रकार है; जैसे चक्र आदि की गति मंद होने पर दंड आदि से गति तीव्र की जाती है. माध्यस्थ्ये तद्वैफल्यमेवेति // 68 // (435) मध्यस्थता में उपदेश की निष्फलता है. Jala AMRAPE 656 For Private And Personal Use Only