________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी यतिधर्म विशेष देशना विधि सद्भावप्रतिबन्धादिति // 53 // (420) सद्भाव में चित्त लगाने से यथाशक्ति प्रवृत्ति होती है. इतरथाऽऽर्तध्यानोपपत्तिरिति // 54 // (421) शक्ति उपरान्त करने से आर्त ध्यान का प्रसंग आता है. अकालोत्सुक्यस्य तत्त्वतस्तत्त्वादिति // 55 // (422) अकाल उत्सुकता वस्तुतः आर्तध्यान ही है. नेदं प्रवृत्तिकालसाधनमिति // 56 // (423) उत्सुकता प्रवृत्तिकाल का साधन नहीं है. इति सदोचितमिति // 57 // (424) * अतः निरंतर उचित कार्य करे. तदा तदसत्त्वादिति // 58 // (425) उस समय वह उत्सुकता असत् है. प्रभूतान्येव तु प्रवृत्तिकालसाधनानीति // 56 // (426) प्रवृत्तिकाल के बताने वाले साधन (कारण) बहुत है. निदानश्रवणादेरपि केषाञ्चत् प्रवृत्तिमात्र-दर्शनादिति // 60 // (427) निदान, श्रवण आदि से भी कईयों की प्रवृत्ति होती दिखती है. तस्यापि तथा पारम्पर्यसाधनत्वमिति // 61 // (428) __ वह प्रवृत्तिमात्र भी तथा भव वैराग्य आदि से उस परंपरा का साधन है. गन 655 For Private And Personal Use Only