________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी = यतिधर्म विशेष देशना विधि उपदेशपालनैव भगवद्भक्तिः, नान्या, कृतकृत्यत्वादिति // 45 // (412) भगवान के उपदेश का पालन करना ही भगवान की भक्ति है. उचितद्रव्यस्तवस्यापि तद्रूपत्वादिति // 46 // (413) उचित द्रव्यस्तव भी उपदेशपालनरूप है अतः वह भी भक्ति है. भावस्तवाङ्गतया विधानादिति // 47 // (414) द्रव्यस्तव भावस्तव का अंग है ऐसा कहा हुआ है // 47 // हृदि स्थिते च भगवति क्लिष्टकर्म-विगम इति // 48 // (415) भगवान हृदय में रहने से किलष्ट कर्मों का क्षय होता है. जलानलवदनयोर्विरोधादिति // 46 // (416) भगवान का स्मरण से क्लिष्ट कर्म का क्षय हो जाता है, जिस प्रकार जल द्वारा अग्नि समाप्त हो जाती है. इत्युचितानुष्ठानमेव सर्वत्र प्रधानमिति // 50 // (417) इस प्रकार उचित अनुष्ठान ही सब जगह मुख्य है. प्रायोऽतिचारासंभवादिति // 51 // (418) प्रायः उचित अनुष्ठान में अतिचार संभव नहीं है। (अतः उचित अनुष्ठान मुख्य है). यथाशक्ति प्रवृत्तेरिति // 52 // (416) यथाशक्ति प्रवृत्ति करने से अतिचार सम्भव नहीं है. 654 For Private And Personal Use Only