________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी यतिधर्म विशेष देशना विधि इति मुमुक्षोः सर्वत्र भावनायामेव यत्नः श्रेयानिति // 37 // (404) इस प्रकार मुमुक्षु सर्वत्र भावना में ही यत्न करें यही श्रेयस्कारी है. तद्भावे निसर्गत एव सर्वथा दोषोपरतिसिद्धेरिति // 38 // (405) भावनाज्ञान द्वारा स्वभावतः उपरामसिद्धि (दोषों से निवृत्ति) होती है. वचनोपयोगपूर्वा विहितप्रवृत्तियोनिरस्या इति // 36 // (406) वचन के उपयोग सहित शास्र में कहे हुए अनुष्ठान की प्रवृत्ति भावना का कारण है. महागुणत्वाद् वचनोपयोगस्येति // 40 // (407) शास्त्रोक्त वचनोपयोग महागुणकारी है. तत्र ह्यचिन्त्यचिन्तामणिकल्पस्य भगवतो बहु-मानगर्भ स्मरणमिति // 41 // (408) वचनोपयोग द्वारा प्रवृत्ति से अचिन्त्य चिन्तामणि समान भगवान का बहुमान सहित स्मरण होता हैं. भगवतैवमुक्तमित्याराधनायोगादिति // 42 // (406) भगवान ने ऐसा कहा है इस प्रकार के आराधना योग से (स्मरण होता है). एवं च प्रायो भगवत एव चेतसि समवस्थानमिति // 43 // (410) इस प्रकार प्रायः भगवान की ही ठीक प्रकार से चित्त में स्थापना होती है. तदाज्ञाराधनाच्च तद्भक्तिरेवेति // 44 // (411) भगवान की आज्ञा की आराधना से भगवान की ही भक्ति होती है. 653 For Private And Personal Use Only