________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी यतिधर्म विशेष देशना विधि भावनानुगतस्य ज्ञानस्य तत्त्वतो ज्ञानत्वादिति // 30 // (367) भावना के अनुसार ज्ञान ही वस्तुतः ज्ञान है. न हि श्रुतमय्या प्रज्ञया, भावनाद्दष्टज्ञातं नामेति // 31 // (368) श्रुतमय बुद्धि से जाना हुआ ज्ञान नहीं, पर भावना से देखा व जाना हुआ ज्ञान हैं. उपरागमात्रत्वादिति // 32 // (366) क्योंकि श्रुतज्ञान केवल बाह्य ज्ञान है. द्दष्टवदपायेभ्योऽनिवृत्तेरिति // 33 // (400) द्दष्ट अनर्थ से व्यक्ति निवृत्ति नहीं पाता. एतन्मूले च हिताहितयोः प्रवृत्ति निवृत्तिरिति // 34 // (401) हित में प्रवृत्ति व अहित से निवृत्ति-इसका मूल ही भावना ज्ञान है. अत एव भावनाद्दष्टज्ञाताद् विपर्ययायोग इति // 35 // (402) इस कारण से ही भावज्ञान द्वारा देखे जाने व जानने पर विपरीत प्रवृत्ति नहीं होती. तद्वन्तो हि द्दष्टापाययोगेऽप्यद्दष्टापायेभ्यो निवर्तमाना दृश्यन्त एवान्य-रक्षादावितीति // 36 // (403) भावनाज्ञान वाले पुरुष द्दष्ट कष्टों की (मरण आदि) प्राप्ति होने पर भी अद्दष्ट (नरक) कष्टों से निवृत्ति पाकर अन्य जीवों की रक्षा में प्रवृत्त होते हैं. 652 For Private And Personal Use Only