________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir % 3 Dगरुवाणी3D यतिधर्म विशेष देशना विधि स्वस्वभावतोत्कर्षादिति // 21 // (388) अपने स्वभाव से उत्कृष्टता प्राप्त होती है. मार्गानुसारित्वादिति // 22 // (386) ज्ञान, दर्शन चारित्र की मार्गानुसारिता से स्वभाव की उच्चता होती है. तथा-रुचिस्वभावत्वादिति // 23 // (360) उसमें रुचि का स्वभाव होने से मार्गानुसारिता प्राप्त होती है. श्रवणादौ प्रतिपत्तेरिति॥२४॥ (361) शास्र श्रवण से (भूल) अंगीकार करने से मार्ग में रुचि होती है. असदाचारगर्हणादिति // 25 // (362) असदाचार की निन्दा करने से सन्मार्ग में रूचि होती है. इत्युचितानुष्ठानमेव सर्वत्र श्रेय इति // 26 // (363) अतः उचित अनुष्ठान ही सब जगह श्रेयस्कर है. भावनासारत्वात् तस्येति॥२७॥ (364) भावना की प्रधानता से उचित अनुष्ठान श्रेयकारी है. इयमेवं प्रधानं निःश्रेयसाङ्गमिति // 28 // (365) भावना ही मोक्ष का प्रधान कारण है. एतत्स्थै र्याद्धि कुशलस्थैर्योपपत्तेरिति // 26 // (366) भावना की स्थिरता से सर्व कुशल आचरणों की स्थिरता होती है. 651 For Private And Personal Use Only