________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पास -गुरुवाणी यतिधर्म विशेष देशना विधि - उचितानुष्ठान हि प्रधानं कर्मक्षयकारणमिति // 13 // (380) योग्य अनुष्ठान कर्मक्षय करने का मुख्य माध्यम है. उदग्रविवेकभावाद् रत्नत्रयाराधनादिति // 14 // (381) उत्कट विवेक से तीन रत्नों का आराधन होता है, उससे कर्मक्षय होता है. अननुष्ठानमन्यदकामनिर्जराङ्गमुक्तविपर्ययादिति॥१५॥ (382) पूर्वोक्त से विपरीत अनुष्ठान अनुष्ठान ही नहीं, वह अकाम निर्जरा का अंग है. निर्वाणफलमत्र तत्त्वतोऽनुष्ठानमिति // 16 // (383) जिस अनुष्ठान का फल मोक्ष है वही तत्त्वतः अनुष्ठान है. न चासदभिनिवेशवत् तदिति // 17 // (384) वह अनुष्ठान मिथ्याभिनिवेशवाला नहीं होता. अनुचितप्रतिपत्ती नियमादसदभिनिवेशो-ऽन्यत्रानाभोगमात्रादिति॥१८॥ (385) अज्ञात अवस्था सिवाय अनुचित अनुष्ठान में प्रवृत्ति हो वह निश्चित दुराग्रह है. संभवति तद्वतोऽपि चारित्रमिति // 16 // (386) केवल अज्ञानता से अनुचित प्रवृत्ति करने वाले को भी चरित्र संभव है. अनभिनिवेशवाँस्तु तद्युक्तः खल्वतत्त्वे // 20 // (387) चारित्रवान पुरुष अतत्त्व में आग्रहरहित होता है. - 650 For Private And Personal Use Only