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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir %Dगुरुवाणी यतिधर्म विशेष देशना विधि तथा-संतानप्रवृत्तेः // 8 // (375) परोपकार करने शिष्य, प्रशिष्य के प्रवाह रूप संतान की उत्पत्ति होती है. तथा-योगत्रयस्याप्युदग्रफलभावादिति // 6 // (376) और तीनों योगों का बड़ा फल मिलता है इस हेतु से. तथा-निरपेक्षधर्मोचितस्यापि तत्प्रतिपत्तिकाले पर-परार्थसिद्धौ तदन्यसंपादकाभावे प्रतिपत्तिप्रतिषेधाच्चेति // 10 // (377) और निरपेक्ष यतिधर्म के योग्य पुरुष को भी अंगीकार करते समय अन्य जीवों की उत्कष्ट सिद्धि कराने के लिये अन्य परुष का अभाव हो तो निरपेक्ष यतिधर्म का अंगीकार करने का प्रतिषेध है अतः परहित ही उत्तम मार्ग है. नवादिपूर्वधरस्य तु यथोदितगुणस्यापि साधुशिष्यनिष्पत्तौ ___ साध्यान्तराभावतः सति कायादिसामर्थ्य सद्वीर्याचारसेवनेन तथा प्रमादजयाय सम्यगुचितसमये आज्ञाप्रमाण्यतस्तथैव योगवृद्धः प्रायोपवेशनवच्छ्रेयान्निरपेक्षयतिधर्म इति // 11 // (378) पूर्वोक्त गुणों सहित नव से अधिक पूर्वधारी अच्छे शिष्य प्राप्त करके, अन्य साध्य कार्य के अभाव में, शरीर सामर्थ्य होने पर, सवीर्याचार के सेवन से, प्रमाद को जीतने के लिये योग्य समय होने पर तथा भोग की वृद्धि के लिये आज्ञा के प्रमाण से अनशन की तरह निरपेक्ष यतिधर्म अंगीकार करे वह अति उत्तम है. तथा-तत्कल्पस्य च परं परार्थलब्धिविकलस्येति // 12 // (376) और जो पूर्वोक्त गुणवाला हो परन्तु अन्यों पर उपकार करने की शक्ति रहित हो वह भी निरपेक्ष यतिधर्म के योग्य है. 649 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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