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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी यतिधर्म विशेष देशना विधि तत्र कल्याणाशयस्य श्रुतरत्नमहोदधेः उपशमादि लब्धिमतः परहिताद्यतस्य अत्यन्तगम्भीरचेतसःप्रधानपरिणतेर्विधूतमोहस्य परमसत्त्वार्थकर्तुः सामायिकवतः विशुद्धमानाशयस्य यथोचितप्रवृत्तेः सात्मीभूतशुभ-योगस्य श्रेयान् सापेक्षयतिधर्म एवेति // 2 // (366) यतिधर्म में शुभ आशयवाला, शास्ररत्नों का समुद्र, उपशम आदि लब्धिप्राप्त, परहित में तत्पर, अत्यंत गंभीर चित्तवाला, उत्तम परिणतिवाला, मोह (मूर्खता) को नाश करनेवाला, जीवों के लिये उत्तम मोक्षरूप प्रयोजन को साधनेवाला, सामायिकवाला, जिसका आशय शुद्ध पवित्र है, उचित प्रवृत्ति करनेवाला, और शुभ योग को आत्मा के साथ जोडनेवाला जो पुरुष (या वचनप्रामाण्यादिति // 3 // (370) भगवान की आज्ञा इसका प्रमाण है. संपूर्णदशपूर्वविदो निरपेक्षधर्मप्रतिपत्ति-प्रतिषेधादिति // 4 // (371) संपूर्ण दश पूर्व जाननेवाले को निरपेक्ष यतिधर्म अंगीकार करने का निषेध है. परार्थसंपादनोपपत्तेरिति // 5 // (372) सापेक्ष यतिधर्म पालन करने से परोपकार होता है // 5 // तस्यैव च गुरुत्वादिति // 6 // (373) धर्म के सब अनुष्ठानों में परोपकार ही सबसे उत्तम है. सर्वथा दुःखमोक्षणादिति // 7 // (374) परोपकार करने से सब दुखों से मुक्ति होती है. 648 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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