________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी यतिधर्म विशेष देशना विधि आशयाधुचितं ज्यायोऽनुष्ठानं सूरयो विदुः / साध्यसिद्धयङ्गमित्यस्माद् यतिधर्मो द्विधा मतः // 31 // आशय से उचित अनुष्ठान को आचार्य श्रेष्ठ कहते हैं। वह साध्य (मोक्ष) की सिद्धि का अंग है अतः यतिधर्म (सापेक्ष और निरपेक्ष) दो प्रकार का है. समग्रा यत्र सामग्री, तदपेक्षेण सिद्धयति। दवीयसाऽपि कालेन, वैकल्येतु न जातुचित् // 32 // जहां सब सामग्री होती है तो कार्य तत्काल सिद्ध होता है पर सामग्री के अभाव में तो काफी समय जाने पर भी सिद्धि हो या न भी हो. तस्माद् यो यस्य योग्यः स्यात्, तत् तेनालोच्य सर्वथा। आरब्धव्यमुपायेन, सम्यगेष सतां नयः // 33 // अतः जो जिसके योग्य हो, उसका, सापेक्ष या निरपेक्ष यतिधर्म का पूर्णतया विचार करके उपाय सहित प्रारंभ करे। यही सत्पुरुषों का न्याय मार्ग है. इत्युक्तो यतिधर्मः,इदानीमस्य विषयविभाग-मनुवर्णयिष्याम इति // 1 // (368) इस प्रकार यतिधर्म कहा है। अब इसके विषय विभागों का वर्णन करते हैं 647 For Private And Personal Use Only