________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी यतिधर्म देशना विधि - तथा-बहुगुणे प्रवृत्तिरिति // 65 // (333) और अधिक गुणवाली क्रिया में प्रवृत्ति करनी चाहिये. तथा-क्षान्तिर्मादवमार्जवमलोभतेति // 66 // (334) क्षमा, मृदुता, सरलता और संतोष रखना चाहिये. क्रोधाद्यनुदय इति // 67 // (335) क्रोध आदि का उदय न होने देना चाहिये. तथा-वैफल्यकरणमिति // 68 // (336) और उदय हुए क्रोध आदि को निष्फल करना चाहिये. विपाकचिन्तेति // 66 // (337) कषायों के फल का विचार करना चाहिये. तथा-धर्मोत्तरो योग इति // 70 // (338) मन, वचन व काया से ऐसा काम करे जिसका फल धर्म होना चाहिये. तथा-आत्मानुप्रेक्षेति // 71 // (336) और साधु को अपने आपकी अपने मन में उठते हुय भावों की तथा कार्यों की स्वयं आलोचना करनी चाहिये. उचितप्रतिपत्तिरिति // 72 // (340) इस प्रकार आत्मनिरीक्षण से योग्य अनुष्ठान अंगीकार करना चाहिये. - -न 642 For Private And Personal Use Only