________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir %3Dगुरुवाणी APER यतिधर्म देशना विधि तथा-परोद्वेगाहेतुतेति // 17 // (286) और दूसरों के उद्वेग का कारण नहीं बनना चाहिये. भावतः प्रयत्न इति // 18 // (287) भाव से प्रयत्न करे, (मन से अप्रीति का कारण टाले). तथा-अशक्ये बहिवार इति // 16 // (288) अशक्य अनुष्ठान का त्याग करे या आरंभ न करे. तथा-अस्थानाभाषणमिति // 20 // (286) न बोलने के स्थान पर (अस्थान में) बोलना नहीं चाहिये. तथा-स्खलितप्रतिपत्तिरिति // 21 // (260) और दोष (स्खलन) का प्रायश्चित करना चाहिये. तथा-पारुष्यपरित्याग इति // 22 // (261) और कठोरता का त्याग करना चाहिये. तथा-सर्वत्रापिशुनतेति // 23 // (262) सबके दोष नहीं देखना या दोषारोपण न करना चाहिये. तथा-विकथावर्जनमिति // 24 // (263) और विकथा (स्त्रीकथा, भोजनकथा, देशकथा एवं राजकथा) का त्याग करना चाहिये. 636 For Private And Personal Use Only