________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गरुवाणी यतिधर्म देशना विधि बाहुभ्यां दुस्तरो यद्वत्, क्रूरनको महोदधिः / यतित्वं दुष्करं तद्वत्, इत्याहुस्तत्त्ववेदिनः // 25 // तत्त्ववेत्ता कहते हैं कि जिस प्रकार क्रूर मगर व मत्स्यवाले महोदधि को अपनी दोनों भुजाओं से तैरना कठिन है उसी प्रकार यह यतिधर्म दुष्कर है. अपवर्गः फलं यस्य, जन्म-मृत्यादिवर्जितः / परमानन्दरूपश्च, दुष्करं तन्न चाद्भुतम् // 26 // परम आनंदरूप जन्म मृत्यु आदि से रहित मोक्ष जिस यतिधर्म का फल है वह दुष्कर हो, उसमें क्या आश्चर्य है. भवस्वरूपविज्ञानात्, तद्विरागाच्च तत्त्वतः / अपवर्गानुरागाच्च, स्यादेतन्नान्यथा क्वचित् // 27 // संसार के स्वरूप को जानने से, उस पर वस्तुतः वैराग्य होने से तथा मोक्ष के प्रति अनुराग से यतिधर्म का पालन हो सकता है अन्यथा किसी तरह नहीं. इत्युक्तो यतिः, अधुनाऽस्य धर्ममनुवर्णयिष्यामः / यतिधर्मो द्विविधः, सापेक्षयतिधर्मो निर-पेक्षयतिधमश्चेति // 1 // (270) इस प्रकार यति का स्वरूप कहा अब यतिधर्म कहते हैं। यतिधर्म दो प्रकार का है-१-सापेक्ष यतिधर्म तथा २-निरपेक्ष यतिधर्म. 633 For Private And Personal Use Only