________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir %3-गुरुवाणी यति सामान्य देशना विधि - तथा-अनन्तरानुष्ठानोपदेश इति // 38 // (264) दीक्षा लेने के बाद में करने योग्य अनुष्ठान का उपदेश करना चाहिये. तथा-शक्तितस्त्यागतपसी इति // 36 // (265) शिष्य की शक्ति के अनुसार त्याग व तप कराना चाहिये. तथा-क्षेत्रादिशुद्धौ वन्दनादिशुद्धया शीलारोपणमिति // 40 // (266) और क्षेत्र आदि की शुद्धि करके वंदन आदि की शुद्धि से शील का आरोपण करना चाहिये. असङ्गतया समशत्रुमित्रता शीलमिति // 41 // (267) अनासक्ति से शत्रु व मित्र के प्रति समभाव रखना शील है. अतोऽनुष्ठानात् तद्भावसंभव इति॥४२॥ (268) इस अनुष्ठान से शील की उत्पत्ति संभव है. तथा-तपोयोगकारणं चेतिती // 43 // (266) और शिष्य के पास तपोयोग कराना चाहिये. एवं यः शुद्धयोगेन, परित्यज्य गृहाश्रमम् / संयमे रमते नित्यं, सं यतिः परिकीर्तितः // 22 // इस प्रकार शुद्ध आचार से गृहस्थाश्रम छोडकर जो नित्य संयम में विचरण करता है वह यति कहलाता है. - 631 For Private And Personal Use Only