________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी यति सामान्य देशना विधि अयुक्त कार्षापणधनस्य तदन्यविढपनेऽपि कोटिव्यवहारारोपणमिति क्षीरकदम्बक इति // 17 // (243) कार्षापण धन में अन्य धन के जुड जाने पर भी उसे कोटिध्वज कहना अयुक्त है ऐसा क्षीरकदम्बकका मत है. न दोषो योग्यतायामिति विश्व इति॥१८॥ (244) योग्यता में दोष नहीं, ऐसा विश्व आचार्य का मत है. अन्यतरवैकल्येऽपि गुणबाहुल्यमेव सा तत्त्वत इति सुरगुरुरिति // 16 // (245) किसी गुण के अभाव में भी बहुत गुणों के विद्यमान होने से वही वस्तुतः योग्यता है ऐसा सुरगुरु-बृहस्पति का मत है. सर्वमुपपन्नमिति सिद्धसेन इति // 20 // (246) बुद्धिमान पुरुष जो भी योग्य माने वह सर्व योग्य है ऐसा सिद्धसेन का मत है. भवन्ति त्वल्पा अपि असाधारणगुणाः कल्याणोत्कर्षसाधका इति॥२१॥ (247) असाधारण गुण अल्प हों तो भी कल्याण व उत्कर्ष के साधक हैं उपस्थितस्य प्रश्नाचारकथनपरीक्षादिविधिरिति // 22 // (248) दीक्षा लेने को आये हुए पुरुष से प्रश्न, आचार कथन तथा परीक्षा आदि विधि से उसकी पात्रता जांचना चाहिये. 628 For Private And Personal Use Only