________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी यति सामान्य देशना विधि निर्गुणस्य कथश्चिद्गुणभावोपपत्तेरिति // 6 // (235) निर्गुण भी कुछ गुण की प्राप्ति कर सकता है. अकारणमेतदिति व्यास इति // 10 // (236) यह (उपर्युक्त) निष्कारण है ऐसा व्यास कहते हैं. गुणमात्रासिद्धौ गुणान्तरभावनियमाभावादिति // 11 // (237) गुणमात्र की अनुपस्थिति में अन्य गुणों की उत्पत्ति निश्चित ही नहीं हो सकती. नैतदेवमिति सम्राडिति // 12 // (238) यह (व्यास का कथन) ऐसा ही है यह सही नहीं ऐसा सम्राट राजर्षि का मत है. संभवादेव श्रेयस्त्व सिद्धेरिति // 13 // (236) योग्यता से ही श्रेयस्त्व (श्रेयपना) की सिद्धि होती है. यत्किशिदेतदिति नारद इति // 14 // (240) सम्राट का मत वास्तविक नहीं है ऐसा नारद कहते हैं. गुणमात्राद् गुणान्तरभावेऽप्युत्कर्षायोगादिति // 15 // (241) योग्यता मात्र से अन्य गुणों की उत्पत्ति संभव है, उत्कर्ष नहीं. सोऽप्येवमेव भवतीति वसुरिति॥१६॥ (242) गुणोत्कर्ष भी इसी प्रकार होता है यह वसु का मत है. 627 For Private And Personal Use Only