________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी यति सामान्य देशना विधि गुरुपादार्हस्तु इत्थंभूत एवविधिप्रतिपन्नप्रव्रज्यः,समुपासितगुरुकुलः अस्खलितशीलः, सम्यगधीतागमः, तत एवं विमलतरबोधात् तत्त्ववेदी, उपशान्तः, प्रवचनवत्सलः, सत्त्वहितरतः, आदेयः, अनुवर्तकः, गम्भीरः, अविषादी, उपशमालब्ध्यादिसंपन्नः प्रवचनार्थवक्ता, स्वगुर्वनुज्ञातगुरुपदश्चेतीति // 4 // (230) ऐसे गुणवाला साधु गुरुपद के योग्य है-१-विधिवत् दीक्षित, २-गुरुकुल सम्यक उपासक, ३-अखंड शीलवाला, ४-आगम का सम्यक अध्ययन करने वाला, ५-उससे बोध होने से तत्त्व का ज्ञाता, ६--उपशांत, ७-संघ के हित में तत्पर, ८-प्राणी मात्र के हित में लीन, ६-जिसका वचन ग्रहणीय हो, १०-गणी जनों का अनुकरण करने वाला, ११-गभीर, १२-विषाद (शोक) न पालने वाला १३-उपशम लब्धिवाला, १४-सिद्धांत का उपदेशक, १५-अपने गुरु से गुरुपद प्राप्त. पादार्द्धगुणहीनौ मध्यमाऽवराविति // 5 // (231) पूर्वोक्त गुणों में अगर चौथाई कम हो तो मध्यम श्रेणी का मानिये और अगर आधा भाग कम हो तो जघन्य श्रेणी का मानिये. नियम एवायमिति वायुरिति // 6 // (232) दीक्षा लेने वाले तथा देने वाले में उपरोक्त सर्व गुण अवश्य होने चाहिये, यह वायु नामक आचार्य का मत है. समग्रगुणसाध्यस्य तदर्द्धभावेऽपि तत्सिध्यसंभवादिति // 7 // (233) सकल गुण से साध्य कार्य की सिद्धि आधे गुण होने पर असंभव है // 7 // नैतदेवमिति वाल्मीकिरिति // 8 // (234) वाल्मीकि के मन से ऐसा नहीं है. lain व 626 For Private And Personal Use Only