SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 654
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir -गुरुवाणी यति सामान्य देशना विधि गुरुवाणी यति का स्वरूप कहते हैं अर्हः अर्हसमीपे विधिप्रव्रजितो यतिरिति // 2 // (228) योग्य अधिकारी योग्य व्यक्ति से विधिवत् दीक्षा ले वह यति है. अथ प्रव्रज्याह: आर्य देशोत्पन्नः, विशिष्टजातिकुलान्वितः, क्षीणप्रायकर्ममलः, तत एव विमलबुद्धिः, दुर्लभं मानुष्यं, जन्म मरणनिमित्तं, संपदश्चपलाः, विषया दुःखहेतवः, संयोगे वियोगः, प्रतिक्षणं दारुणो विपाक: इत्यवगतसंसारनैर्गुण्यः, तत एव तद्विरक्तः, प्रतनुकषायः, अल्पहास्यादिः, कृतज्ञः, विनीतः, प्रागपि राजामात्यपौरजनबहुमतः, अद्रोहकारी, कल्याणाङ्गः, श्राद्धः, स्थिरः, समुपसंपन्नश्चेति // 3 // (226) दीक्षा लेने योग्य पुरुष के लक्षण कहते हैं-१-आर्य देश में उत्पन्न, २-विशिष्ट जाति व कुलवाला, ३-कर्म मल प्रायः क्षीण हों, ४-उससे निर्मल बुद्धिवाला, ५-मनुष्य भव दुर्लभ है, जन्म मरण का निमित्त है, संपत्ति चंचल है, विषय दुःख का कारण है, संयोग में वियोग है, मृत्यु प्रतिक्षण है, कर्म विपाक भयंकर है ऐसी संसार की असारता को जानने वाला, ६-अतः संसार से विरक्त, ७-अल्प कषायवाला, ८-थोडा हास्य आदि (नोकषायवाला), ६-कृतज्ञ, १०-विनयवान, ११-पहले भी राजा, मंत्री तथा पुरजन आदि द्वारा सम्मानित, १२-द्रोह न करने वाला, १३-कल्याणकारी अंग व मुखाकृति वाला, १४-श्रद्धावान, १५-स्थिर, १६-दीक्षा के हेतु गुरु समीप आया हुआ. -ह 625 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy