________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -वारुवाणी: यति सामान्य देशना विधि एवंविधिसमायुक्तः, सेवमानो गृहाश्रमम् / चारित्रमोहनीयेन, मुच्यते पापकर्मणा // 16 // इस प्रकार विधि से गृहस्थ धर्म को पालने वाला पुरुष चारित्र मोहनीय नामक पापकर्म में से मुक्त हो जाता है. सदाज्ञानाराधनायोगाद्, भावशुद्धेर्नियोगतः / उपायसंप्रवृत्तेश्च, सम्यक्चारित्ररागतः // 20 // प्रभु की शुद्ध आज्ञा को फलन करने से-श्रावक धर्म के पालन करने से हृदय की जो निर्मलता प्राप्त होती है और सम्यक चारित्र पर अनुराग रखने से एवं शुद्ध हेतु को अंगीकार करने की प्रवृत्ति से अवश्य ही चारित्र मोहनीय कर्म क्षय होते है. विशुद्ध सदनुष्ठानं, स्तोकमप्यर्हतां मतम् / तत्त्वेन तेन च प्रत्याख्यानं ज्ञात्वा सुबह्वपि // 21 // शुद्ध व सदनुष्ठान अल्प होने पर भी अरिहंत को मान्य है क्योंकि तत्त्व से प्रत्याख्यान का स्वरूप समझ जाने पर बहुत करने का भी विचार होता है. इति विशेषतो गृहस्थ धर्म उक्तः, सांप्रतं यति धर्मावसर इति यतिमनुवर्णयिष्याम इति // 1 // (227) इस प्रकार गृहस्थ का विशेष धर्म कहा है। अब यतिधर्म करने का अवसर है अतः यति का व यतिधर्म का वर्णन करते हैं. 624 For Private And Personal Use Only