________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी गृहस्थ विशेष देशना विधि तथा-शासनोन्नतिकरणमिति // 67 // (200) जैन शासन की उन्नति करना चाहिये. विभवोचितं विधिना क्षेत्रदानमिति // 68 // (201) अपने वैभव के अनुसार विधिवत् क्षेत्र में दान करना चाहिये. सत्कारादिविधिनिःसंगता चेति // 66 // (202) सत्कार आदि सहित मोक्ष से भिन्न सब इच्छाओं का त्याग करके जो काम करे वह विधिवत् है. वीतरागधर्मसाधवः क्षेत्रमिति ||70|| (203) वीतराग धर्म से युक्त साधु योग्य क्षेत्र हैं. तथा-दुःखितेष्वनुकम्पा यथाशक्ति द्रव्यतो भावतश्चेति ||71|| (204) दुःखी पुरुषों पर द्रव्य तथा भाव से यथाशक्ति अनुकम्पा व दया रखनी चाहिये. तथा-लोकापवादभीरुतेति // 72 // (205) लोकापवाद से डरते रहना चाहिये. तथा-गुरुलाघवापेक्षणमिति // 73 // (206) सब बातों में गुरु लघु की-बड़े छोटे की अपेक्षा रखना चाहिये. बहुगुणे प्रवृत्तिरिति // 74 // (207) अधिक गुणवाले में प्रवृत्ति करनी चाहिये. 620 For Private And Personal Use Only