________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी गृहस्थ विशेष देशना विधि तथा-गुरुसमीपे प्रश्न इति // 56 // (162) और गुरु से प्रश्न करने चाहिये. तथा-निर्णयावधारणमिति // 60 // (163) गुरु के निर्णय किये हुए अर्थ की, वचन की अवधारणा करनी चाहिये. तथा-ग्लानादिकार्याभियोग इति ||61|| (164) ग्लान आदि का कार्य करने में सावधान रहना चाहिये. तथा-कृताकृतप्रत्युपेक्षेति // 62 // (165) कृत व अकृत कार्यो के प्रति सावधानी तत्परता रखनी चाहिये. ततश्च-उचितवेलयाऽऽगमनमिति // 63 // (166) वहां से उचित समय पर घर पर लौटना चाहिये. ततो धर्मप्रधानो व्यवहार इति // 64 // (167) तब धर्मपूर्वक अपना व्यवहार करना चाहिये. तथा-द्रव्ये संतोषपरतेति // 65 // (168) द्रव्य-धन, धान्य आदि में संतोषपरता या संतोष-प्रधानता-मुख्यतः संतोष रखना / धार्मिक पुरुष अपने परिणाम किये हुए के अनुसार तथा निर्वाह मात्र के लिये जो द्रव्य-धन मिले उसी में संतोष रखना चाहिये. तथा-धर्म धनबुद्धिरिति // 66 // (166) 'धर्म ही धन है' ऐसी बुद्धि रखे. 619 For Private And Personal Use Only