________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी गृहस्थ विशेष देशना विधि ख ततः चैत्यसाधुवन्दनमिति // 50 // (183) तब अरिहंत बिंब व साधु का वन्दन करना चाहिये. ततः गुरुसमीपे प्रत्याख्यानाभिव्यक्तिरिति // 51 // (184) तब गुरु के सम्मुख पच्चक्खाण प्रकट (उच्चार) करना चाहिये. ततो जिनवचनश्रवणे नियोग इति // 52 // (185) फिर जिनवचन सुनने में ध्यान लगाना चाहिये. ततः सयक् तदर्थालोचनमिति // 53 // (186) तब जिनवचन के अर्थ पर सम्यक् रीति से विचार व मनन करना चाहिये. ततः आगमैकपरतेति // 54 // (187) जिन आगम को ही प्रधान मानना चाहिये. ततःश्रुतशक्यपालनमिति // 55 // (188) आगम से सुने हुए का यथाशक्ति पालन करना चाहिये. तथा-अशक्ये भावप्रतिबन्ध इति // 56 // (186) अशक्य अनुष्ठान में भावना रखनी चाहिये. तथा-तत्कतृषु प्रशंसोपचाराविति // 57 // (160) और अशक्य अनुष्ठान करने वाले की प्रशंसा व उपचार करना चाहिये. तथा-निपुणभावचिन्तनम् // 58 // (161) सूक्ष्म बुद्धि से ज्ञात होने वाले भावों का चिंतन करना चाहिये. 618 For Private And Personal Use Only