________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी3D गृहस्थ विशेष देशना विधि सचित्तनिक्षेपपिधानपरव्यपदेशमात्सर्यकालातिक्रमा इति // 34 // (167) साधु को अर्पण करने योग्य वस्तु को सचित्त पर रखना, उसे सचित्त से ढकना, अपनी वस्तु को दूसरे की बताना, मत्सरभाव तथा समय का उल्लंघन करना-ये पांच अतिचार अतिथि संविभागवत के हैं. एतद्रहिताणुव्रतादिपालनं विशेषतो गृहस्थधर्म इति // 35 // (168) इन अतिचारों रहित अणुव्रत का पालन गृहस्थ का विशेष धर्म है. क्लिष्टकर्मोदयादतिचारा इति // 36 // (166) क्लिष्ट कर्म के उदय से अतिचार लगते हैं. विहितानुष्ठानवीर्यतस्तज्जय इति // 37 // (170) अंगीकृत सम्यक्त्व के आचरण (सामर्थ्य) से अतिचार विजित होते हैं. अत एव तस्मिन् यत्न इति // 38 // (171) अतः अनुष्ठान करने के लिये यत्न करना चाहिये. सामान्यचर्याऽस्येति // 36 // (172) इस गृहस्थ की सामान्य चर्या (चेष्टा) इस प्रकार होती है. समानधार्मिकमधे वास इति // 40 // (173) समान धर्म वाले के बीच में रहना चाहिये. तथा-वात्सल्यमेतेष्विति // 41 // (174) इन साधार्मिकों पर वात्सल्यभाव रखना चाहिये. 616 For Private And Personal Use Only