________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir % Dगरुवाणी गृहस्थ विशेष देशना विधि - उर्वार्धास्तर्यग्व्यतिक्रमक्षेत्रवृद्धिस्मृत्यन्तर्धानानीति ||28 // (161) ऊपर, नीचे व तिरछा क्षेत्र का व्यतिक्रम (ये तीन), क्षेत्रवृद्धि और स्मृतिनाश-ये पांच अतिचार पहला गुणव्रत-दिशा परिमाण के हैं. सचित्तसंबद्धसंमिश्रामिभषवदुष्पक्वाहारा इति // 26 // (162) सचित्त, सचित्त से संबद्ध, सचित्त से मिश्रित, मदिरा, आसव आदि से संसर्गवाला, अर्ध पक्व या दुष्पक्व-ये पांच अतिचार हैं. कन्दर्पकौकुच्यमौखर्यासमीक्ष्याधिकरणोपभोगाधिकत्वानीति // 30 // (163) कामोद्दीपक, नेत्र की कुत्सित क्रिया, वाचालता, विचार बिना साधनों का रखना तथा उपभोग में अधिकता-ये पांच अतिचार हैं. योगदुष्प्रणिधानानादरस्मृत्यनुपस्थापनानीति ||31 // (164) मन, वचन, काया के योगों की पापमार्ग में प्रवृत्ति, अनादर व स्मृतिनाश-ये पांच प्रथम शिक्षाव्रत के अतिचार हैं. आनयनप्रेष्यप्रयोगशब्दरूपानुपातपुद्गलप्रक्षेपा इति // 32 // (165) नियमित क्षेत्र के बाहर से वस्तु मंगाना, सेवक या मनुष्य भेजना, शब्द सुनाना, रूप दिखाना, तथा कंकर आदि पुद्रगल फेंकना ये पांच अतिचार हैं. अप्रत्युपेक्षताप्रमार्जितोत्सर्गादाननिक्षेपसंस्तारोपक्रमणाऽनादरस्मृत्यनुपस्थापनानीति // 33 // (166) बिना देखे व बिना प्रमार्जित किये मल-मूत्र त्याग करना, ऐसे ही स्थान में धार्मिक उपकरण रखना या लेना, संथारा (पथारी) को बिना देखे या प्रमार्जे बिना उपभोग करना, पौषधोपवास का अनादर करना और स्मृतिनाश ये पांच अतिचार हैं. DU 615 For Private And Personal Use Only