________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी गृहस्थ विशेष देशना विधि बन्धनवधच्छविच्छेदातिभारारोपणान्नपाननिरोधा इति // 23 // (156) बन्ध, वध, चर्म या अंगछेदन, अतिभार रखना तथा अन्नपान को रोकना-ये पांच प्रथम व्रत के अतिचार हैं. मिथ्योपदेशरहस्याभ्याख्यानकूटलेखक्रियान्यासापहारस्वदारमन्त्रभेदा इति // 24 // (157) इसके पांच अतिचार ये हैं (1) मिथ्या उपदेश, (2) रहस्यकथन, (3) झूठे दस्तावेज या साक्षी, (4) अमानत का दुरुपयोग और (5) स्त्री आदि के साथ हुई गुप्त बात प्रगट करना. स्तेनप्रयोगतदाहृतादानविरुद्वराज्यातिक्रमहीनाधिकमानोन्मानप्रतिरूपकव्यवहारा इति // 25 // (158) अदत्तादान व्रतके पांच अतिचार ये हैं-(१) स्तेन-प्रयोग-चोर को मदद करना, (2) चुराई हुई वस्तु का संग्रह, (3) शत्रु देश में प्रवेश (4) न्यूनाधिक तोल नाप रखना तथा (5) मिलावट अथवा समान दिखानेवाली हलकी व कीमती वस्तु का आपसी बदलना. परविवाहकरणेत्वरपरिगृहीताऽपरिगृहहीतागमनानङ्गक्रीडातीव्रकामाभिलाषा इति // 26 // (156) दूसरों के पुत्र या पुत्री का विवाह करना, दूसरे की रखेली स्त्री और वेश्या के साथ संभोग, अनंगक्रीडा तथा तीव्र काम अभिलाषा-ये पांच अतिचार हैं. क्षेत्रवास्तुहिरण्यसुवर्णधनधान्यदासीदासकुप्यप्रमाणातिक्रमा इति // 27 // (160) क्षेत्र-वास्तु, स्वर्ण-चांदी, धन-धान्य, दासी-दास, और आसन-शय्या; इन सबका अतिक्रमण-ये पांच अतिचार है. न 614 For Private And Personal Use Only