________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी: गृहस्थ विशेष देशना विधि तथा-दिगवतभोगोपभोगमानानर्थदण्डविरतयस्त्रीणि गुणव्रतानीति // 17 // (150) और दिग्परिणाम व्रत, मोगोपभोगका प्रमाण तथा अनर्थदंड विरमण ये तीन गुणव्रत कहलाते हैं. तथा-सामायिकदेशावकासिकपौषधोपवासातिथिसंविभागश्चत्वारि शिक्षापदानीति ||18|| (151) सामायिक, देशावकासिक, पौषध और अतिथि-संविभाग ये चार शिक्षाव्रत हैं. ततश्च एतदारोपणं दानं यथार्हे साकल्यवैकल्याभ्यामिति ||16|| (152) जिस प्रकार योग्य हो, सकलता या विकलता से धर्म योग्य प्राणीको इन व्रतों का आरोपण या व्रतदान करना चाहिये. गृहीतेश्वनतिचारपालनमिति ||20|| (153) ग्रहण करने के बाद अनतिचार पालन करना या अतिचार नहीं लगने देना चाहिये शङ्काकाङ्क्षाविचिकित्साऽन्यद्दष्टि प्रशंसासंस्तवाः सम्यग्द्दष्टेरतिचारा इति // 21 // (154) शंका, कांक्षा, विचिकित्सा, अन्य दर्शन की प्रशंसा व परिचय करना ये छ सम्यग् द्दष्टि के अतिचार है. तथा-व्रतशीलेषु पञ्च पञ्चयथाक्रममिति ||22|| (155) अणुव्रत और शील व्रत के प्रत्येक के पांच-पांच अतिचार हैं. 613 For Private And Personal Use Only