________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी गृहस्थ विशेष देशना विधि KO सहिष्णोः प्रयोगेऽन्तराय इति // 6 // (142) समर्थ व्यक्ति को व्रतदान से यतिधर्म में अन्तराय होता है. अनुमतिश्चेतरत्रेति ||10 // (143) श्रावक धर्म देने से अनुमोदना दोष आता है. अकथन उभयाफल आज्ञाभङ्ग इति ||11 // (144) (ऐसे) न कहने से दोनों धर्म के फल रहित होने से आज्ञा भंग होता है. भगवद्वचनप्रामाण्यादुपस्थितदाने दोषाभाव इति // 12 // (145) भगवान के वचन के प्रमाण से श्रावक धर्म ग्रहण करने में तत्पर पुरुष को उसका दान करने में दोष नहीं है. गृहपतिपुत्रमोक्षज्ञातादिति // 13 // (146) गृहपति के पुत्र को मुक्त कराने के दृष्टांत से ज्ञात होता है. योगवन्दननिमित्तदिगाकारशुद्धिर्विधिरिति // 14 // (147) योगशुद्धि, चन्दनशुद्धि, निमित्तशुद्धि, दिकशुद्धि और आगारद्धि ये अणुव्रतादि की प्राप्ति में विधि हैं. तथा-उचितोपचारश्चेति // 15 // (148) और देवगुरु आदि की उचित सेवा करना. स्थूलप्राणातिपातादिभ्यो विरतिरणुव्रतानि पञ्चेति // 16 // (146) स्थूल हिंसा आदि पांच अव्रत से निवृत होने को पांच अणुव्रत कहते हैं. 612 For Private And Personal Use Only