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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी गृहस्थ विशेष देशना विधि तच प्रायो जिनवचनतो विधिनेति // 3 // (136) प्रायः वह धर्मग्रहण वीतराग के सिद्धांत के अनुसार निम्न विधि से होता है. इति प्रदानफलवत्तेति // 4 // (137) इस प्रकार धर्म का दान सफल होता है. सति सम्यग्दर्शने न्याय्यमणुव्रतादीनां ग्रहणं नान्यथेति // 5 // (138) सम्यग्दर्शन की प्राप्ति होने पर अणुव्रत आदि ग्रहण योग्य होता है, बिना समकित प्राप्ति के ये व्रत निष्फल जाते है. जिनवचनश्रवणादेः कर्मक्षयोपशमादितः सम्यग्दर्शनमिति // 6 // (136) जिनवचन के श्रवणादिक से और कर्म के क्षयोपशम आदि से सम्यग्दर्शन होता है. प्रशमसंवेगनिर्देदानुकम्पाऽऽस्तिक्याभिव्यक्तिलक्षणं तदिति // 7 // (140) प्रशम, संवेग, निर्वेद, अनुकम्पा और आस्तिक्य इन लक्षणों वाला सम्यग्दर्शन है. उत्तमधर्मप्रतिपत्त्यसहिष्णोस्तत्कथनपूर्वमुपस्थितस्य विधिनाऽणुवतादिदानमिति // 8 // (141) उत्तम (यति) धर्म को ग्रहण करने में असमर्थ, अपने पास धर्म ग्रहण करने के लिये आये हुए पुरुष को अणुव्रत आदि का स्वरूप समझा कर उसका विधिवत् दान करे. 611 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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