________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी गृहस्थ विशेष देशना विधि सद्धर्मश्रवणादेवं, नरो विगतकल्मषः / ज्ञाततत्त्वोमहासत्वः, परं संवेगमागतः // 13 // सद्धर्म श्रवण से जिसका पाप चला गया है, जिसने तत्त्व पा लिया है और जो महान पराक्रम वाला है ऐसा श्रोता पुरुष उत्कृष्ट संवेग को प्राप्त हुआ है. धर्मोपादेयतां ज्ञात्वा, संजातेऽच्छोऽत्र भावतः / दृढं स्वशक्तिमालोच्य, ग्रहणे संप्रवर्तते // 14 // धर्म की उपादेयता जानकर, धर्म के प्रति भावना सहित, स्वशक्ति का दृढ़ विचार करके मनुष्य उसे अंगीकार करने की प्रवृति करता है. योग्यो ह्येवंविधः प्रोक्तो, जिनैः परहितोद्यतैः / फलसाधनभावेन, नातोऽन्यः परमार्थतः // 15 // परहित में उद्यत जिनेश्वरों ने फल साधना के भाव से ऐसे ही लक्षणों से युक्त पुरुषों को योग्य कहा है। वस्तुतः अन्य पुरुष इसके योग्य नहीं है. इति सर्द्धग्रहणार्ह उक्तः, साम्प्रतं तत्प्रदानविधिमनुवर्णयिष्यामः ||1|| (134 // इस प्रकार सद्धर्म ग्रहण करने योग्य पुरुष का वर्णन किया. अब उस सद्धर्म को देने की विधि कहते हैं. धर्मग्रहणं हि सत्प्रतिपत्तिमद् विमलभावकरणमिति // 2 // (135) सत्प्रतिपत्ति से धर्म ग्रहण करना निर्मलभाव का कारण है. ह 610 For Private And Personal Use Only