________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी गृहस्थ देशना विधि तथा-विशुद्धे चारित्रमिति // 72 // (130) और समकित की शुद्धि से चारित्र की प्राप्ति होती है. भावनातो रागादिक्षय इति // 73 // (131) भावना से रागादिक का क्षय होता है. तद्भावेऽपवर्ग इति 74 // (132) उस रागादिक क्षय से अपवर्ग की प्राप्ति होती है. स आत्यन्तिको दुःखविगम इति // 75 // (133) पूर्णतया सब दुःखोंका नाश मोक्ष है. एवं संवेगकृद् धर्म, आख्येयो मुनिना परः। यथाबोधं हि शुश्रूषो चितेन महात्मना ||10|| इस प्रकार धर्मभावना वाला महात्मा मुनि, श्रोता को संवेग करने वाला उत्कृष्ट धर्म अपने बोध के अनुसार कहे. अबोधेऽपि फलं प्रोक्तं, श्रोतृणां मुनिसत्तमैः / कथकस्य विधानेन, नियमाच्छुद्धचेतसः // 11 // उत्तम मुनि कहते हैं कि यदि श्रोता को लाभ न हो तो भी शुद्ध चित्तवाले उपदेशक को विधिवत् उपदेश क्रिया का निःसंशय फल होता ही है. नोपकारो जगत्यस्मिँताद्दशो विद्यते क्वचित्। याद्दशी दुःखविच्छेदाद्, देहिनां धर्मदेशना ||12|| प्राणियों के दुःख का विच्छेद करने से धर्मदेशना जो उपकार करती है वैसा जगत में दूसरा उपकार नहीं. 609 For Private And Personal Use Only