________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गरुवाणी गृहस्थ देशना विधि अतोऽन्यथैतत्सिद्धिरिति तत्त्ववाद इति // 64 // (122) इससे भिन्न आत्मा को मानने से बंध व मोक्ष की सिद्धि होती है वह तत्त्ववाद है. परिणामपरीक्षेति // 65 // (123) श्रोता के परिणाम की परीक्षा करना चाहिये. शुद्धे बन्धभेदकथनमिति // 66 // (124) शुद्ध परिणाम देख कर बन्धभेद का वर्णन करना चाहिये. तथा-वरबोघिलाभप्ररूपणेति // 67 // (125) श्रेष्ठ बोधि बीज के लाभ की प्ररूपणा करनी चाहिये. तथा-भव्यत्वादितोऽसाविति // 68|| (126) उस प्रकार के भव्यत्वादिक से उस समकित की प्राप्ति होती है. ग्रन्थिभेदेनात्यन्तसंक्लेश इति // 66 // (127) ग्रन्थि (राग द्वेष) को छेद देने से अत्यन्त संक्लेश (पूर्व कठोरता) नहीं होता. न भूयस्तद्बन्धनमिति // 70 // (128) पुनः उस राग द्वेष की ग्रन्थि का बन्धन नहीं होता. तथा-असत्यपाये न दुर्गतिरिति ||71 // (126) समकित दर्शन का नाश न हो तो दुर्गति नहीं होती. 608 For Private And Personal Use Only