________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी गृहस्थ देशना विधि तथा-अनित्ये चापराहिंसनेनेति // 56 // (114) यदि सर्वथा अनित्य हो तो अन्य से हिंसा हो नहीं सकती. तथा-भिन्न एव देहान्न स्पृष्टवेदनमिति // 57 // (115) यदि आत्मा देह से सर्वथा भिन्न हो तो स्पर्श आदि वेदना न हो. तथा निरर्थकनुग्रह इति // 58 // (116) यदि आत्मा का देह से सम्बन्ध न हो तो देह पर किया गया भोगों का उपकार आत्मा को शांति नहीं दे सकता. अभिन्न एवामरणं वैकल्यायोगादिति // 56 // (117) देह व आत्मा सर्वथा अभिन्न हो तो मृत्यु नहीं हो सकती, शरीर वैसा ही रहता है. मरणे परलोकाभाव इति // 60 // (118) मृत्यु मानने से परलोक का अभाव सिद्ध होता है. तथा-देहकृतस्यात्मनाऽनुपभोग इति ||61|| (116) देह व आत्मा को सर्वथा भिन्न मानने से देह द्वारा उपार्जित कर्म का आत्मा द्वारा उपभोग न होना चाहिये. तथा-आत्मकृतस्य देहेनेति // 62 // (120) और आत्मा द्वारा किये हुए कर्म का उपभोग देह से नहीं हो सकता. दृष्टेष्टवाधेति // 63 // (121) द्दष्ट व इष्ट गलत सिद्ध होता है. 607 For Private And Personal Use Only