________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी गृहस्थ देशना विधि हिंसादयस्तद्योगहेतवः, तदितरे तदितरस्य // 46 // (107) हिंसा, असत्य, चोरी, मैथुन व परिग्रह ये पांच अव्रत तत्व में अश्रद्धा तथा क्रोध, मान, माया, लोभ-चार कषाय. यह पापबन्ध के हेतु हैं. अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह आदि पांच व्रत सम्यक्त्व और चारों कषायों का त्याग मोक्ष के कारण है. प्रवाहहतोऽनादिमानिति // 50 // (108) कर्मबन्ध प्रवाह से अनादि हैं. कृतकत्वेऽप्यतीतकालवदुपपत्तिरिति // 51 // (106) बन्ध का कारण होने पर भी वह अतीतकाल की तरह ही अनादि समय से समझना चाहिये. वर्तमानताकल्पं कृतकत्वमिति // 52 // (110) वर्तमान काल की तरह बन्ध भी किया हुआ है. परिणामिन्यात्मनि हिंसादयो, भिन्नभिन्ने च देहादिति // 53 // (111) देह से कुछ भिन्न व अभिन्न ऐसे परिणामी आत्मा से हिंसादिक बंध होता है. अन्यथा तदयोग इति // 54 // (112) अन्यथा हिंसादि का उससे अयोग होता है. नित्य एवाविकारतोऽसंभवादिति // 55 // (113) नित्य अविकारी आत्मा द्वारा दोषों का होना असंभव है. OU 606 For Private And Personal Use Only