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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org : गुरुवाणी "अन्नं मांससमं प्रोक्तं" जब वैदिक ऋषि-मुनियों ने भी यह उदाहरण दिया तो इसका मतलब आप समझ लीजिए कि उसके त्याग का कितना महत्त्व है. प्रत्येक धर्म में आपको बात नज़र आएगी. महावीर का वचन सापेक्ष है. उसमें आपके संसार की बात भी आएगी. सामाजिक दृष्टि से भी चिन्तन मिलेगा. आपके शारीरिक आरोग्य के बारे में भी जानकारी मिलेगी. आध्यात्मिक दृष्टि से परमात्मा को प्राप्त करने का उपाय भी उसके अन्दर आपको मिलेगा. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमात्मा का प्रत्येक प्रवचन सापेक्ष होता है. धार्मिक दृष्टि से रात्रि भोजन का त्याग जीव दया का पालन होता है. आध्यात्मिक दृष्टि से मानसिक शान्ति मिलती है. आपके सदाचार का पालन होता है. रात्रि में किया हुआ आहार पेट में गर्मी पैदा करता आपके जीवन को क्षीण बनाएगा, विकार उत्पन्न करेगा, उत्तेजना उत्पन्न करेगा और वह मानसिक पीड़ा, क्रोध के रूप में परिवर्तित होगी. आवेश आएगा. राग और द्वेष के परिणाम को पुष्टि मिलेगी. इसीलिए उसको वर्जित माना गया है. आध्यात्मिक दृष्टि से इसीलिए उसका परित्याग किया गया है. सायंकाल यदि आहार करना पड़े तो सूर्य की रोशनी में करना चाहिए. सन्ध्या को पांच बजे सूर्यास्त से पूर्व करिए. कम से कम घण्टा दो घण्टा शरीर को श्रम और चलने को मिलता है. कार्य करने में वह भोजन आसानी से पच जाता है. पूरा पानी मिल जाता है. इससे आपको बीमारी नहीं होगी. जयना का अभाव याने निरीक्षण का अभाव कई बार बड़ी भयंकर भूल बन जाती है. रात्रि में कदाचित् पानी का उपयोग करना पड़े तो देखकर जयनापूर्वक, कोई जीव-जन्तु इसमें न हो, देखकर के यदि आप करते हैं तो ठीक है. बम्बई घाटकोपर में एक बड़ा सुखी संपन्न जैन परिवार रहता था. रात्रि में पूना के लिए निकलना था. नौकर को कहा चाय बना लाओ. हमने आज घर का सारा काम नौकरों को सौंप दिया, कहां तो श्राविका चाय बनाती, सब काम यत्नपूर्वक होता, जीवन का आरोग्य मिलता, आहार पवित्र मिलता, बुद्धि और विचारों की शुद्धता रहती थी, आज क्या है ? परिश्रम की चोरी के कारण बाहर से आटा पिसा कर लाते हैं, उसका सारा सत्व जल जाता है, विटामिन खत्म हो जाता है. पहले सुबह उठते ही घण्टा भर परिश्रम करते, घर पर ही हाथ की चक्की से पिसाई करते, प्रमोदपूर्वक पिसाई होती, शुद्ध आहार, प्रोटीन मिलता. अब प्रोटीन कहां मिलेगा क्योंकि आटा तो जल जाता है. चक्की से पीसने के बाद आप आटे के कनस्तर को पकड़िए तो हाथ जल जाएगा, आप पकड़ नहीं सकते. इतनी "हीट" होती है. गेहूं का सारा सत्व जल जाता है. उसका माधुर्य फीका पड़ जाता है. शरीर को बल कहां से देगा. सब गुण तो उस चक्की में ख़त्म हो गया. जिस मात्रा 35 For Private And Personal Use Only 同 धन
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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