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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 3-गुरुवाणी आपको यहां कौन बिठाएगा? पुलिस का स्टाफ बेकार हो जाएगा तथा वकीलों की जमात बेकार हो जाएगी. हजूर आप बेकार हो जाएंगे. आपके बीवी-बच्चों का क्या होगा?" हम कितने बड़े स्टाफ का भरण-पोषण करते हैं, जरा हमारे कार्य पर तो विचार कीजिए. आप चोरी की बात करते हैं. उससे आगे कुछ नहीं सोचते, कि चोरी करने वाले कितना बड़ा उपकार देश पर कर रहे हैं. लाखों-करोडों व्यक्तियों का पेट भर रहे हैं. हजारों व्यक्तियों का भरण-पोषण हो रहा है. यह सब चोरी का परिणाम है. इसी प्रकार यदि आप होटल में न जाएं तो हॉस्पिटल बेकार हो जाएंगे महाराज क्या बताए - ऐसी हालत में फेमली डाक्टरों की दशा क्या होगी? हाँ तो मेरा कहना था कि यह सारी बीमारियों का जन्म स्थान है. मैं आपको अपनी दृष्टि से नहीं कहता कि आप छोड़ दीजिए. आप समझ कर के छोड़िये. "भोजन आधा पेट कर, दुगना पानी पीऊं। तिगुना श्रम, चौगुनी हंसी, वर्ष सवा सौ जीऊं ॥" तीन गुना श्रम होना चाहिए. हम लोग साधना का श्रम करते हैं, कई व्यक्ति बेचारे संसार में रहते हैं, नैतिक दृष्टि से उनका कर्त्तव्य है. परिवार का भरण-पोषण करना. वे शारीरिक श्रम करते हैं. चौगुनी हंसी. हंसी का मतलब है -- प्रसन्नता. चित्त में प्रसन्नता “हैप्पीनेस” चाहिए. प्रसन्नता रोग का प्रतिकार करती है. प्रसन्नता बहुत-सी बीमारियों की बड़ी सुन्दर दवा है. प्रसन्नता चित्त के अन्दर राग और द्वेष के परिणाम को खत्म करती है, मन्द कर देती है. तो मेरा कहना था कि यह दवा तो ऐसी है अगर आप सेवन करें तो आरोग्य भी मिल जाए. रोग का प्रतिकार भी हो जाए और सब तरह से आपका जीवन आनन्द-मंगलमय हो जाए. शाम के समय भोजन कर यदि आप सो जाते हैं तो पूरी रात वह आहार गैस उत्पन्न करता है. बिना पानी के बिना श्रम के वह शरीर बीमारियों का घर बनता हैं और धीरे-धीरे वे रोग शुरू हो जाते हैं. यह मात्र जैन दर्शन में नहीं अपितु मार्कण्डेय पुराण में मार्कण्डय ऋषि ने भी - कहा है: “अस्तं गते दिवानाथे आपो रूधिरमुच्यते। अन्नं मांससमं प्रोक्तं मार्कण्डेय महर्षिणा ॥ मार्कण्डेय ऋषि ने लिखा कि रात्रि के समय, सूर्य के अस्त होने के बाद यदि कोई व्यक्ति पानी पीता है तो वह रक्त के बराबर है और यदि अन्न का सेवन करता है तो वह मांस के तुल्य है. - - 34 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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