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-गुरुवाणी
आयुर्वेद में कहा गया है:
"भोजन आधा पेट कर, दुगना पानी पीऊं।
तिगुना श्रम, चौगुनी हंसी, वर्ष सवा सौ जीऊं ॥" आहार जिस मात्रा में किया गया, उससे दुगनी मात्रा में पानी पीना चाहिए. यह आयुर्वेद का सिद्धान्त है. इसके बाद तीन गुणा शारीरिक श्रम अपेक्षित है. पाचन हो जाता है तो शरीर का आरोग्य सुरक्षित रहता है. __ आरोग्य तो गांव में है, सुबह से शाम तक किसान काम करता है. धूप सहन करता है, गर्मी सहन करता है, रोग के प्रतिकार की उसमें कैसी शक्ति वहां कोई सर्दी-गर्मी नहीं होती. वहां कोई बीमारी नहीं आती. सशक्त रहते हैं. वहां मुश्किल से ही कोई हॉस्पिटल है. कभी दवा के लिए लाइन नहीं लगाते. कभी कोई शारीरिक कारण बन जाये तो अलग बात है. आरोग्य की दृष्टि से शहरी लोगों से तो वो बेचारे पुण्यशाली हैं.
बड़ी सात्विक खुराक है, वे कुछ उल्टा-सीधा नहीं खाते. आईसक्रीम पार्टी में नहीं जाते. वे अपनी तरफ से कोई माल-मलीदा नहीं उड़ाते. सूखी रोटी और दाल-साग खाते हैं फिर भी उनका शरीर हृष्ट-पुष्ट होता है. यह उनके श्रम का परिणाम है. जितनी आप श्रम की चोरी करेंगे, उतना ही रोग को आमन्त्रण देंगे. फिर यह शरीर न रहकर कार्टून बन जाएगा. अधिक मात्रा में श्रम की चोरी का परिणाम, रोग को आमन्त्रण देना है. ___सुविधाएं इतनी बढ़ गईं हैं कि ऊपर चढ़ना है तो लिफ्ट चाहिए. नीचे उतरे तो गाड़ी चाहिए. गाड़ी से उतरकर दुकान गए तो सोफा चाहिए और वहां जाकर आराम से बैठ गए. कहां से आरोग्य मिलेगा? फिर तो आप बेचारे डाक्टरों की ही दया के पात्र हैं.
किसी कारण से एक बार सेठ मफतलाल को कोर्ट में उपस्थित होना पडा. कोई क्रिमिनल केस था.
न्यायाधीश ने पूछा - "आप जैसे शरीफ आदमी और कोर्ट में! आप पर चोरी का केस!"
जज का पहला ही प्रश्न था कि "आपने चोरी क्यों की?" सेठ बोले माफ कीजिएगा - "मैंने आपके लिए चोरी की." यह सुनते ही, जज तो चौंक गया. "मैंने आपसे कब चोरी करने को कहा था?"
"आप नहीं समझते. यह तो बड़ा सुन्दर राष्ट्रीय कार्य है. "नो प्राबलम" आज राष्ट्र में बेकारी की समस्या बहुत बड़ी है. लगभग दो करोड़ पढ़े-लिखे शिक्षित व्यक्ति, आज इस देश में बेकार हैं. आप मेरी बात को बड़े ध्यान से समझिए. मैं बड़ी दार्शनिक दृष्टि से यह बात कह रहा हूं. बहुत बड़े पैमाने पर जीवों का उपकार कर रहा हूँ. हजारों-लाखों आदमियों का पेट भरता हूं. परिवार का पोषण करता हूं. अगर चोरी नहीं करू तो हजूर!
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