________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी: गृहस्थ देशना विधि बहुत्वात् परीक्षावतार इति // 33 // (61) श्रुतधर्म बहुत है अतः उत्तम की परीक्षा में खरे उतरने वाले श्रुतधर्म का पालन करना चाहिये. कषादिप्ररूपणेति // 34 // (62) कष छेद और ताप तीनों की प्ररूपणा करना चाहिये. विधिप्रतिषेधौ कष इति // 35 // (63) विधि और निषेध यह कष की कसौटी है. तत्सम्भवपालनाचेष्टोक्तिश्छेद इति // 36 // (64) उनकी उत्पत्ति तथा पालन करने की चेष्टा को कहना छेद है. उभयनिबन्धनभाववादस्ताप इति // 37 // (65) कष व छेद के परिणामी कारण जीवादि भाव की प्ररूपणा ताप है. अमीषामन्तरदर्शनमिति // 38 // (66) इनका (कष, छेद व ताप) तीनों परीक्षाओं का परस्पर अंतर बताना चाहिये. कषच्छेदयोरयत्न इति // 36 // (67) कष व छेद इन दो कसौटियों पर खरी उतरने मात्र से ही वस्तु का आदर नहीं करना चाहिये. तद्भावेऽपि तापाभावेऽभाव इति // 40 // (68) कष, छेद के होने पर भी ताप के अभाव में उनका भी अभाव समझे. 604 For Private And Personal Use Only