________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी गृहस्थ देशना विधि तथा-साधारणगुणप्रशंसेति // 3 // (61) उपदेशक को सामान्य गुणों की प्रशंसा करनी चाहिये. तथा-सम्यक् तदधिकाख्यानमिति // 4 // (62) और सम्यक् प्रकार से उच्च गुणों का आख्यान करना चाहिये. तथा-अबोधेऽप्यनिन्देति // 5 // (63) गुण का बोध न भी हो तब भी निंदा नहीं करना चाहिये. शुश्रुषाभावकरणमिति // 6 // (64) सुनने की इच्छा का भाव श्रोता में उत्पन्न करना चाहिये. तथा-भूयोभूय उपदेश इति // 7 // (65) यदि श्रोता को शीघ्र बोध न हो तो बार बार उपदेश करते रहना चाहिये. तथा-बोधे प्रज्ञोपवर्णनमिति ||8|| (66) बोध होने पर उसकी बुद्धि की प्रशंसा करनी चाहिये. तथा तन्त्रावतार इति // 6 // (67) श्रोता को पहले शास्त्र के प्रति बहुमान उत्पन्न कराकर उसके द्वारा शास्त्र में प्रवेश कराना चाहिये. तथा-प्रयोग आक्षेपण्या इति ||10 // (68) श्रोता को मोह से तत्व की ओर आवर्जित करने वाली कथा कहनी चाहिये. 600 For Private And Personal Use Only