________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir % 3 Dगुरुवाणी गृहस्थ देशना विधि प्रायः सद्धर्मबीजानि, गृहिष्वेवंविधेष्वलम्। रोहन्ति विधिनोप्तानि, यथा बीजानि सक्षितौ // 7 // जैसे अच्छी पृथ्वी में विधिवत् बोये हुए बीज उगते हैं वैसे ही उपयुक्त लक्षण वाले गृहस्थों में विधि सहित बोये हुए सद्धर्म के बीज प्रायः उग आते है. बीजनाशो यथाऽभूमौ, प्ररोहो वेह निष्फलः। तथा सद्धर्मबीजानामपात्रेषु विदुर्बुधाः ||8|| जैसे ऊषर भूमि में पड़ा हुआ बीज अंकुर हो जाने पर भी निष्फल जाता है वैसे ही अपात्र के प्रति धर्म का बीजारोपण हो, वह भी नष्ट होता है, ऐसा पंडित कहते है. न साधयति यः सम्यगज्ञः स्वल्पं चिकीर्षितम्। अयोग्यत्वात् कथं मूढः, स महत् साधयिष्यति // 6 // जो अज्ञानी अपनी तुच्छ इच्छा को भी नहीं साध सकता, वह मूढ़ अयोग्य होने से मोक्ष प्राप्तिरूप महत् कार्य का संपादन कैसे कर सकता है? इति सद्धर्मदेशनार्ह उक्तः, इदानीं तद्विधिमनुवर्णयिष्याम इति // 1 // (56) इस प्रकार सद्धर्म की देशना का अधिकारी बता कर उसकी देशना विधि कहते है. तत्प्रकृतिदेवताधिमुक्तिज्ञानमिति ||2|| (60) देशनायोग्य व्यक्ति की प्रकृति तथा उसके इष्ट देव आदि का ज्ञान प्राप्त करना चाहिये. 599 For Private And Personal Use Only