________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी गृहस्थ सामान्य धर्म तथा-यथोचितलोकयात्रेति // 46 // योग्यता अनुसार यथोचित लोक व्यवहार में प्रवृत्ति करना चाहिये. तथा-हीनेषु हीनक्रम इति // 47 // अपने कर्म के दोष से, जाति, विद्या आदि गुणों के आधार पर जो लोक में हीन माना जाये उस के साथ तदनुकूल व्यवहार करना चाहिये. तथा-अतिसङ्गवर्जनमिति // 48 // अति परिचय रखने से अवज्ञा या अवगणना होने लगती है अतः अधिक परिचय का त्याग करना चाहिये. तथा-वृत्तस्थज्ञानवृद्धसेवेति // 46 // सदाचारी व ज्ञानवृद्ध पुरुषों की सेवा करनी चाहिये. तथा-परस्परानुपघातेनान्योऽन्यानुबद्धत्रिवर्गप्रतिपत्तिरिति // 50 // परस्पर विरोध उत्पन्न न हो ऐसे तरीके से धर्म, अर्थ एवं काम तीनों की साधना करनी चाहिये. तथा-अन्यतरबाधासंभवे मूलाबाधेति // 51 // धर्म अर्थ एवं काम एक त्रिवर्ग है उसमें किसी भी उत्तरोत्तर पुरूषार्थ को अन्तराय होने पर पूर्व पुरूषार्थ को अन्तराय या बाधा न होने देनी चाहिये. तथा-बलाबलापेक्षणमिति // 52 // अपनी शक्ति व अशक्ति को सोच कर ही काम करना चाहिये. तथा-अनुबन्धे प्रयत्न इति // 53 // धर्म, अर्थ व काम की उत्तरोत्तर वृद्धि का प्रयत्न करना चाहिये. 597 For Private And Personal Use Only