________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir –गुरुवाणी गृहस्थ सामान्य धर्म 4--21 तथा अरिषड्वर्गत्यागेनाविरुद्धार्थप्रतिपत्त्येन्द्रियंजय इति // 15 // छह अंतरंग (काम, क्रोध, लोभ, मान, मद एवं हर्ष) शत्रुओं को जीत कर गृहस्थ अवस्था के योग्य धर्म एवं अर्थ को अंगीकार करके इन्द्रियों को जीतना चाहिये. तथा-उपप्लुतस्थानत्याग इति // 16 // उपद्रव वाले स्थान का त्याग करना चाहिये. तथा-स्वयोग्यस्या श्रयणमिति // 17 // अपने योग्य पुरुष या स्थान का आश्रय लेना चाहिये. तथा-प्रधानसाधुपरिग्रह इति // 18 // उत्तम और सदाचारी व्यक्तियों की संगति करना चाहिये. तथा-स्थाने गृहकरणमिति // 16 // योग्य स्थान में निवास स्थान बनाना चाहिये. अतिप्रकटातिगुप्तस्थाननुचितप्रातिवेश्यं चेति // 20 // जो स्थान बहुत खुला हुआ या बहुत गुप्त हो तथा जिसके पड़ौसी खराब या अयोग्य हों, वह स्थान रहने के लिये अयोग्य है. लक्षणोपेतगृहवास इति // 21 // वास्तुशास्त्र में कथित लक्षणों वाले घर में रहना चाहिये. निमित्तपरीक्षेति // 22 // शकुन स्वप्न एवं उपश्रुति आदि निमित्तों से परीक्षा करनी चाहिये. 593 For Private And Personal Use Only