________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी to आप तक पहुंचायेंगे. मैत्री भावना का आदर्श रखेंगे और अन्दर उसे आप भी जानते हो मैं भी जानता हूं. हमारी आज क्या स्थिति है? बोलने को कहेंगे महावीर की सन्तान हैं, एक बाप बेटे हैं, क्षमापना का प्रसंग आयेगा. बडे जोर से हाथ जोडकर मिच्छामि दक्कडम "कहेंगे फिर वही निन्दा, संघर्ष, कोर्ट कचहरी चालू, वहीं दीवार खड़ी कर देने का, दरवाजा बन्द कर देने का. कहां है अपनत्व की भावना? ये नाटक कितने ही वर्षों से चला आ रहा है. इस वर्ष मुझे भी आमन्त्रण मिला. मैंने कहा बरोबर मैं भी एक्टिंग करूगा. नाटक रचना मैं भी सीख लूगा. ____ मैं प्रेक्टिकल को मानता थ्योरेटिकल नहीं. और बहुत साफ मैं तो कह दूंगा-यह तो नाटक है. परन्तु ठीक है यदि किसी आत्मा को अपने शब्द से चोट लग जाये, जग जाये, अपना प्रयास करना जानते है कि रोगी मरने वाला है फिर भी अन्तिम श्वासोच्छवास तक उपचार तो करते हैं. हमारा भी यह प्रयास हो कि हमारी स्थिति बड़ी नाजुक है फिर भी हमारा उपचार तो चालू होना चाहिए कि किसी तरह से धर्म शासन को हमारे द्वारा कोई सहयोग मिल जाये. अन्तर में जो मैत्री सुषुप्त है, वह जग जाये. आत्मा का आरोग्य और स्वास्थ्य मिल जाये. यही हमारा प्रयास होगा. इस महान पर्व की आराधना को नाटक न बनाये. माया का पर्दा नहीं होना चाहिए. जो है स्पष्ट होना चाहिए. उसी में सत्य का दर्शन होगा. सत्य की अनुभूति होगी. आठ दिन इस प्रकार का आप निकालें रात्रि भोजन नहीं करूंगा. असत्य का आश्रय न लूंगा. चाहे कैसा भी आ जाये, झूठ बोलकर के काम नहीं लूंगा. ____ कुछ वर्ष पहले मेरा बम्बई चातुर्मास था, अचानक सुबह के समय में बालकेश्वर से आ रहा था, रास्ते मे गुलालवाड़ी में एक परिचित व्यक्ति मिला. बहुत बड़ा बाजार है वहा का. उधर से आ रहा था, एक आदमी दूर से नज़र आया. बहुत वर्षों का मेरा परिचित था और बड़ा अच्छा आदमी था. जैसे ही मैं उधर से आया तो बड़ा प्रसन्न था. चेहरे में न जाने कहां से आनन्द आया. मैंने उसको पास में आने का इशारा किया. काफी दिनों नहीं मिला था. चेहरे में बड़ी प्रसन्नता थी. मैंने कहा सुबह का समय और यह इतना हंस रहा है, बात क्या है? मैंने कहा-प्रसन्नता कहीं से उधार लाया या घर का है? परिचित था बेधड़क मैने पूछ लिया. उसने कहा-महाराज! आज तो सुबह का समय बड़ा फल देने वाला बना. मैंने कहा-क्या फल दे गया. (घडी दिखाई) मैंने कहा-घड़ी तो हरेक के हाथ में होती है. अरे यह घड़ी है दस हजार रूपये की. मैंने कहा-उससे मेरे को क्या? हि हना 582 For Private And Personal Use Only