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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी: 87 अरे महाराज, रास्ते चलते एक आदमी आया डिलीवरी केस था. आज रविवार का दिन. उसने कहा सेठ साहब, मेरी घरवाली को आज डिलिवरी के लिए होस्पीटल भरती किया है. घर में इतना पैसा मैं लाया नहीं और आफिस भी बन्द, बैंक भी बन्द, मजबूरी है, आप किसी भी तरह आज मुझे हजार रुपये दे दो. मै कल यह घड़ी आपके यहां से ले जाऊंगा और हजार का बारह सौ दे दूंगा. मैने मना कर दिया. बेचना है तो बेच दो उधार ब्याज पर देता नहीं. उस आदमी ने कहा पचीस सौ रुपये में आप ले लीजिए. दस हजार में लाया हूं. यह इसका बिल है. महाराज आज तो कम से कम पन्द्रह हजार की कीमत होगी. यह तो विदेश से लाया है. बिल विदेश का है. भारत में तो इसकी कीमत कम से कम पन्द्रह हजार है सिर्फ पचीस सौ में दे गया. सुबह सुबह यह लाभ भी मिला. बड़ी सुन्दर घड़ी है. मैंने कहा इसको ऐसा आनंद आया है. पन्द्रह हजार की घड़ी असत्य से 2500 में लेकर आनन्द ऐसा कि वाह? मैंने सोचा कि अगर उपेदश दिया तो उपदेश भी बह जायेगा. यह अभी उपदेश लायक स्थिति में नहीं है यह दिमागी पागलपन है. मैं मौन रहा. मैंने -कहा ठीक है मैं चलता बना. पन्द्रह बीस दिन बाद फिर से मझे एक बार आना पड़ा. वह व्यक्ति वहीं व्यापार करता था. दलाली करता था. मैटल की, मन्दिर के नीचे ही मिल गया. चेहरा एकदम वीतराग भाव उदास. प्रसन्नता नहीं. उधार ली हुई थी फिर पास में बलाया. आया. मैंने कहा--कैसा चल रहा है? ठीक है. मैंने कहा-घड़ी कहां है? महाराज बात छोड़ दीजिए. मैंने कहा छोड़ क्यों दूं? वही तो मुझे जानना है. प्रसन्नता का आयुष्य कितना? महाराज क्या बतलाऊं? बडा बेवकफ बना बिल नकली था. घडी भी नकली दो दिन तो घडी सही चली. तीसरे दिन घड़ी ने कार्य शुरू किया चली ही नहीं, वाच मेकर के पास ले गया और दिखलाया कि घड़ी इस तरह की है. उसने कहा सेठ साहब! कहां मूर्ख बनके आये? ये तो हांगकांग की नकली घड़ी इसी तरह की है. यों मैं भी नहीं लूंगा. डालो कचरा पेटी में, राख के साथ डाल रहे हो. क्यों मरम्मत करवा रहे हो? कोई मूल्य नही. अच्छा बेवकूफ बना. पचास साठ मित्रों में मर्ख बना. जो मिलता है, मजाक करता है. ___ मैंने कहा-देखा असत्य से उपार्जन किया हुआ आनन्द. उसका आयुष्य कितना? अगर सत्य का देता तो जिन्दगी में कभी रोने का प्रसंग नहीं आता. सत्य का आनन्द स्थायी होता है और असत्य से उपर्जान किया हुआ आनन्द हमेशा अस्थायी होगा. "सर्वमंगलमांगल्यं सर्वकल्याणकारणम्। प्रधानं सर्वधर्माणां जैन जयति शासनम्" // nod 583 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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