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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी ब्रह्मचारी हों, वह भी बाल ब्रह्मचारी हों, तो यह नदी मुझे जाने का मार्ग दे कि मैं अपने गुरुदेव को जाकर भोजन दे सकूँ, उनकी भक्ति कर सकूँ. नदी ने मार्ग दे दिया. आश्चर्य यह कि कोई मंत्र नहीं, कोई यंत्र नहीं. शब्द का चमत्कार श्री कृष्ण का शब्द ही मंत्र था. वह चाहे बाहर से अपने भोगवाले कर्म का उपभोग करे अन्तरात्मा में तो पूर्ण अलिप्त थे. कोई अनुराग नहीं, कोई भोग की अनुचित क्रिया नहीं, निर्विकारी आत्मा. कृष्ण के जीवन का यह आदर्श नदी ने मार्ग ने दिया. उनको भोग कर्म में आसक्ति नहीं थी, विरक्त आत्मा थी. भोगवाले कर्म को भोगने के लिए ही मेरा अवतार है परन्तु भोगों में डूबे हुए नहीं, उनके भोग में भी योग का प्रवेश. योग का चमत्कार की शब्द, मन्त्रदान गया. नदी ने मार्ग दे दिया. गुरुदेव के पास जाकर आहार रख दिया. दुर्वासा ऋषि बड़े प्रसन्न हुए. कहा-इस भयंकर बाढ़ के अन्दर तुम कैसे चल करके आ गई? श्री कृष्ण ने आशीर्वाद दिया और कहा कि यदि श्री कृष्ण ब्रह्मचारी हों तो यह नदी मैं आ तो गई अब जाने के लिये विचार करती हूं कि जाऊं कैसे? यहां तो कृष्ण हैं नहीं. दुर्वासा ऋषि ने पेट भर के आहार किया, कहा-बेटी जाओ जाकर नदी से प्रार्थना करो यदि दुर्वासा ऋषि कायव्रती हों तो नदी मार्ग दे दे. गई. जाकर वही शब्द दोहराया. प्रार्थना की यदि मेरे गुरुदेव दुर्वासा ऋषि सदा उपवास करते हो. तो नदी मार्ग दे दे. नदी ने मार्ग दे दिया कैसा चमत्कार क्योंकि आहार की आसक्ति नहीं, खाना खाना था खा लिया. शरीर के रक्षण के लिए लेना पड़ता था, ले लिया. कोई आहार में वासना नहीं. किसी प्रकार की आसक्ति नहीं. जब हमारे जीवन की यह स्थिति आ जायेगी. भोग में योग का प्रवेश हो जायेगा. अनासक्त भावना आ जायेगी, तब साधना एक क्षण के अन्दर सिद्ध हो जायेगी. उसके लिए पसीना उतारने की जरूरत नहीं पड़ेगी, यह निर्देश दिया तथा लौल्यत्याग इति आहार की लोलुपता का त्याग कर देना है, पर्युषण के आठ दिन कम से कम एकासना. बालक है, बुद्ध है, बीमार है, कोई कारण है, दो वक्त खाइये पर कम से कम रात का तो उपवास करें. दिन का नहीं हुआ कोई चिन्ता नहीं, रात का तो उपवास रखे. पर्व का दिन है ऐसी अभक्ष्यवस्तु का सेवन तो न करे, गृहस्थ अवस्था में रहकर के संन्यासी बन जाये, संसार में रह करके सन्यास ले ले. कैसा? आठ दिन झूठ नही बोलूंगा. व्यापार में कितना भी नुकसान हो आप देखिये नुकसान हो. आप देखिये नुकसान फिर नफा का कारण बनेगा. तीव्र पुण्य का उदय आयेगा. यह कसौटी है. 578 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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