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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी Asav सो रहा है. कुमार पाल ने तलवार निकाली और उसकी चादर को तलवार से हटाया. आवाज दी. सेनापति आवाज सुनकर जागा. पहली बार आखें खोली. सोचता है यह स्वप्न है या सत्य है? मैं कहा हूं? मेरी सेना कहां? मेरा कैम्प कहां? मैं कहा आ गया?. कुमार पाल ने कहा-घबराने की जरूरत नहीं. यह मेरा राजमहल है. पाटन है. तुम मेरी गिरफ्तारी में हो. मेरे अधिकार में हो. बताओ तुम्हारे साथ कैसा व्यवहार करूं? तलवार पास है. सेनापति ने कहा-मैं कुरान की कसम खाता हूं कि मैं कभी गुजरात की तरफ झांककर नहीं देगा. आज के बाद कभी इधर नहीं आऊंगा. जो भूल कर दी, उसके लिए क्षमा चाहता हूं. मुझे नही मालूम था, आपकी साधना में वह शक्ति है. ___ जहां तक कुमार पाल जीवित रहे, किसी भी राज्य ने किसी भी दिन यह साहस नहीं किया कि मैं आक्रमण करूं और कुमारपाल के राज्य का कब्जा करने की सोचूं, यह धर्म साधना का पुण्य बल. निष्काम भावना से जहां साधना की जाती हो, तो मुक्ति सहज में प्राप्त हो जाती है. वहां कोई दूषित मनोवृति नहीं थी. कलिकाल सर्वज्ञ की पुण्य छाया है, उस छाया के अन्दर कुमार पाल राज्य का संचालन कर रहा था. ___ कैसी व्यवस्था थी? जब पर्युषण का मंगल पर्व आता, आठ दिन तक पोषण. इतने बड़े राज्य का मालिक, एक देश नहीं अठारह देश का मालिक, महाराष्ट्र से लगाकर पूरा मध्य प्रदेश. इधर पूरा गुजरात सौराष्ट्र उसके अधिकार में, सम्पूर्ण राजस्थान उसके अधिकार में, इतने दिन साम्राज्य का मालिक. आठ दिन का समय निकालता 3 धर्म श्रवण करता. दो समय प्रतिक्रमण विधि पूर्वक दुग्ध व्रत की आराधना करता. देखता हूं कि बल ही पर्व का आगमन होता है. अपने यहां तो अठारह दुकान भी किसी के शायद नहीं है. हमारी आराधना कैसी होती है? वह मुझे देखना है मुझे आराधना से मतलब है. यह पुण्य की पूंजी है अन्दर अगर पुण्य की पूंजी है तो बाहर पाकेट स्वयं भर जायेगा. यदि पुण्य का ही अभाव है तो बाहर सींग मारते रहिए. जिन्दगी भर कुछ मिलेगा नहीं, मांगते रहिए किसी के हाथ में कुछ देना है ही नहीं. आप गाते रहिए, चिल्लाते रहिए, छम छमिया बजाते रहिए. कुछ भी नहीं मिलेगा. मिलेगा कहां से अन्दर होना चाहिए. पुण्य उपार्जन करने का यही रास्ता है. पर्व की आराधना निष्काम भावना से परोपकार करना. ऐसे सुन्दर प्रसंग पर जीव दया का पालन करना. अपने पास दो पैसा मिला है. कुदरत ने दिया है. परोपकार के कार्य में, जीव दया में, दीन दुखी की अनुकम्पा में, कोई दुखी आता है आंसू पोछने में, उस पैसे का उपयोग करें. पैसा पाप से जन्म लेता और यदि पुण्य में डाला जाये तो वह बीज वृक्ष बन कर अनन्त गुना फल देता है. Veure 576 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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