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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी संयोग किसी कारण से मफतलाल सेठ के हिस्से में जो बिल्ली का पांव आया, उसे कुछ चोट लग गई. बरसात का मौसम था, पक गया. तीन ने कहा-ये तुम्हारे हिस्से का पांव है, इसका तुम ईलाज करवाओ. मफतलाल डाक्टर के पास गये. ईलाज बगैरा किया. बिल्ली की आदत दूध पीने के समय रसोई में आकर बैठ जाती. दूध पीकर बिल्ली ने छलांग लगाई. पैरों का सन्तुलन बिगड़ गया. पट्टी वाले पांव में वहां आग पकड़ ली. आग लगने से बिल्ली सीधी गोदामों में गई. पूरे गोदाम में आग लग गई. लाखों का नुकसान हो गया और माल जलकर भस्म हो गया. तीनों भागीदारों ने मिलकर कोर्ट में केस कर दिया मफतलाल के हिस्से में जो पांव आया था उसका इसने ध्यान नहीं रखा. उसमें जो पट्टी थी उसने आग पकड़ ली और हमारा सारा गोदाम जल गया. इतना नुकसान हुआ मुआवजा दिया जाये. कैसे जला. ___मफतलाल बड़ा होशियार था. वकील की तो जरूरत नहीं पड़ी. जज ने जब उससे पूछा-तुमको कोई सफाई देनी है? तुम जानते हो? यह सारा नुकसान तुम्हारे कारण हुआ? अगर तुमने पांव का ध्यान रखा होता, हिफाजत की होती, आज यह घटना नहीं होती. इनका माल नहीं जलता. कितना बड़ा नुकसान हुआ. मफतलाल ने जज से कहा-साब, हमने भी जिन्दगी भर बहुत से वकीलों के साथ दिन निकल जाने की डिग्री तो नहीं ली, परन्तु कानून की सलाह जरूर देता हूं. जज साब! माफ करना मुझे अपनी सफाई के लिए आपसे यही कहना है कि अगर ये तीनों भागीदार सावधान होते तो ये दुर्घटना नहीं होती. मेरे पांव ने क्या कसूर किया है ? वो पांव तो चल ही नहीं सकता था, चोट लगी थी, पट्टी बंधी थी, ये तीनों पांव गुनहगार हैं, ये उनको वहां क्यों ले गये? यह तो चल ही सकता था, इन्होंने ही उसे वहां तक पहुंचाया है. हिस्सेदारों को ध्यान देना था. हमारे पांव ने तो कोई गनाह नहीं किया है. वह तो बिना तीनों के सहयोग से वहां तक नहीं पहुंच सकता था. जज को सारा विचार बदलना पड़ा. मफतलाल कम नहीं थे, अकल का खजाना था. संयोग कई बार ऐसा भी हो जाता है, कब किस चीज़ का उपयोग करना. मील के अन्दर जब से समस्या पैदा हुई, मफतलाल ने आकर मालिक से कहा-हजूर दो मिन्ट में पूरा मिल चालू कर दूं, मुझे दस हजार रुपया दो. सेठ ने कहा बड़े-बड़े इंजीनियर यहां आकर चले गये, कोई रिजल्ट नहीं, आया तुम कहां से इंजीनियर बन गये? साहब, दिल्ली का पानी पिया है. पूरी बुद्धि बड़ी धारदार है. कभी आपने देखी नहीं. दिखा दूं? 574 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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