________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी: आत्मा की. साधु उसे माना गया जो साधना करे. जगत की आत्माओं को धर्म क्रिया में सहयोगी बने, स्वयं सहनशील हो अपनी साधना का परमानन्द लेने वाला हो, तब तो वह साधु. वह साध कितने अलिप्त रहते थे. गृहस्थ के परिचय से कितने दूर रहते थे. सुबह से शाम तक यदि गृहस्थी का परिचय चलता रहे. सारे दिन ऐसी समा रहे तो साधु बेचारे लूटे जायेंगे. कोई समय उनके पास नहीं. सारा समय तो गृहस्थ लुट चुके, सुबह से शाम तक अपकी सेवा में ही रहें. आप गये और पूछे तब तो आप प्रसन्न रहें, आप आएं और मैं आपसे कहूं-आओ भाई बैठो. कैसे चल रहा है? धन्धा ठीक चल रहा है? परिवार में शान्ति है? तो महाराज बहुत अच्छे. ____ बिना पैसे का सर्टिफिकेट, महाराज बहुत अच्छे. गृहस्थ की खुशामदी करें, आने वाले का स्वागत करें, आपकी कुशलता पूछे, वो महाराज बहुत अच्छे. मौन रहे और कदाचित आप आ जायें और यदि ध्यान न दिया जाये. कैसा लगता है? मुंह बिगड़ेगा, अभिप्रायः बिगड़ेगा, महाराज को घमण्ड आ गया है.. ___कई बार परीक्षा कर लेते हैं, बहुत चक्कर मारे तो एक बार देख लेते हैं, कितने में है? कांच है तो जरा भी गर्मी बर्दास्त नहीं करेगा? ज़रा भी गर्मी लगी तो तडक जायेगा. अगर असली हीरा है तो चाहे कितनी भी गर्मी दो वह हीरा हीरा रहेगा. बहुत चक्कर मारे मेरे पीछे तो मैं तो कह देता हूं-भई, साधु हूं. कुछ नहीं है. मुखपति चाहिए तो दे दूं. और कुछ नहीं है. क्यों बेकार चक्कर खा रहे हो. जूते घिस रहे हो. कभी आंख फिरा के देख भी लूं कि कच्चा है या पक्का, चौदह कैरिट है या चौबिस करट तुरन्त मालूम पड़ जाता है. परन्तु हमें क्या? आप आये तो ठीक न आये तो ठीक साधु का द्वार खुला है, हृदय में कोई पाप नहीं. आए तो हमारे श्रावक या प्राणी सुखी रहें. यही भावना दृष्टि से कोई पाप नहीं, कोई भेद नहीं, क्यों? डरना तो पाप से है, ऐसा कोई अन्तर पाप साधु रखते नहीं, मेरे लिए सभी समान. __ हेम चन्द्र सूरि जी महाराज प्रतिदिन अपनी साधना में ज्ञान ध्यान स्वाध्याय में कोई जाति का प्रपंच नहीं, परिचय नहीं, साधुता का परिचय अल्प होता है. मेरे परिचय से यदि आपका परिवर्तन हो जाये, यह संगत यदि रंग लाये, तब तो आप को खूब धन्यवाद दूं कि मेरे परिचय से आपको आनंद हुआ, प्रसन्नता हुई, धर्म की प्राप्ति हुई, परन्तु आपके परिचय से ही यदि साधुओं का ही पतन हो जाये तो वो परिचय तो पतन बनता है. मेरा परिचय आपका परिवर्तन लाने वाला चाहिए. ऐसा नहीं कि आपका परिचय मेरा ही परिवर्तन ले आये. परिचय विवेक पूर्वक होना चाहिए. साधुओं के पास आये, जरूर आये, भावना से आये, उनकी साधना में सहायक बने, बाधक बने नहीं. अपने को इतना ही विवेक रखना है. वह अपने कार्य में है, स्वाध्याय में है, आत्म 572 For Private And Personal Use Only