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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir -गुरुवाणी निश्चित मुझे मरना है, उस समय कैसी प्रसन्नता, अपनी मौत का भी महोत्सव मनाया, धर्म के नाम पर दोनों पुत्रों ने अपना जीवन दे दिया. इतनी दृढता. जब गुरु गोबिन्द सिंह को मालूम पड़ा, तब उन्होंने आदेश दिया इस उपलक्ष में पूरे पंजाब में दिवाली मनाओ. सिंह के दोनों पुत्र मर गये. धर्म के नाम से अपने जीवन जो बलिदान कर दिया. बाप कैसा? शेर की सन्तान शेर होनी चाहिए. दिवाली मनाओ. मिठाई बांटो कि मेरे पुत्रों ने मेरे कुल को उज्ज्वल किया, प्राण दे दिये, इतिहास बन गया. अपने अन्दर है यह मान? दो आने में पचास बार झूठ बोलें. कहां ये मान आये. संसार की प्राप्ति में इतनी प्रसन्नता हो तो साधना के लिए वह भाव कहां से आयेगा. यह आपका दोष नहीं. यह हमारे संस्कारों का दोष है. कुमार पाल अपनी प्रतिज्ञा से बद्ध. सूर्य पुत्रों का कुलीन वंश था. मुगल शत्रुओं को मालूम पड़ गया कि बड़ा सुनहरा मौका है, आक्रमण करना चाहिए. चातुर्मास के अन्दर बडी सेना लेकर गजरात पर आक्रमण की तैयारी कर दी. मुगलसेना मौका देखकर गुजरात में घुस गयी. कुमार पाल सम्राट् को मालूम पड़ा. गुरु भगवान के पास गया. जिन्होंने प्रतिज्ञा दी थी कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्र सूरि जी महाराज. इस आत्मा के उपकार को हम कभी तीन काल में भूल नहीं सकते. कैसा अपूर्व साधना बल था उनके पास. कैसी अपूर्व दैवी शक्ति थी उनके पास. शासक जब तक जिन्दा है, जहां तक महावीर का धर्म शासन है. उनके उपकार को हम कभी नहीं भूल सकते. सर्वोपरि उनका उपकार है. इस आत्मा के गुणों का आप अनुमोदन करें, जिसने साहित्य का समुद्र जैन जगत को दिया. साढ़े तीन करोड़ श्लोक बनाकर धर्म ग्रन्थ आपके सामने रखे. इतिहास दिया. महान पुरूषों का जीवन चरित्र बना करके दिया. जैन रामायण की रचना की. पाण्डव चरित्र बना करके दिया. न्याय में, दर्शन में, योग में, कोई ऐसा विषय नहीं, स्वतन्त्र व्याकरण बनाकर दिया जो दनिया में आज सबसे प्रसिद्ध व्याकरण है. व्याकरण के बाद जो पाणिनि व्याकरण से भी सरल है. राजा कुमारपाल गया गुरुचरणों में जाकर निवेदन किया-भगवान मेरी इज्जत अब आपके हाथ में है. चातुर्मास में बाहर पांव न रखने की प्रतिज्ञा ली हुयी है. दुश्मनों को मौका मिल गया. आकर गुजरात में प्रवेश कर गये. यदि इन्हीं का शासन चला तो प्रजा क्या कहेगी? तुम्हारा धर्म कायर है. धर्म की बदनामी, प्रभु शासन की बदनामी. मेरा राज्य जाये, उसकी चिन्ता नहीं. मेरा था ही नहीं तो मेरा क्या जायेगा. मन से यही सोच रहा था, यह तो सब अस्थायी है. स्थायी कुछ भी नहीं है. कभी भी ट्रान्सफर हो सकता है. भगवन यह इज्जत आपके हाथ में है. ___“कुमार पाल! बिल्कुल निश्चिंत रहो. कभी प्रभु शासन की बदनामी नहीं होगी. यह धर्म कभी कलंकित नहीं बनेगा. यह सब मैं संभाल लूंगा.” क्या अपूर्व साधना थी? उस IDE 571 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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